- श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम आरती पश्चात प्रशाद सभी श्रद्धालुओं ने ग्रहण किया
नूंह/तावडू, 26 नवंबर
सुनील कुमार जांगड़ा
कामधेनु आरोग्य संस्थान बिस्सर गांव में गोभक्त श्रद्धेय संजीव कृष्ण ठाकुर जी के सान्निध्य में सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा में अंतिम दिवस की कथा विधिवत पूजा अर्चना से आरंभ हुई।
कथा के अवसर पर नोएडा से प्रख्यात विचारक एवं साधक योगाचार्य अरुण कुमार, पूर्व आई.ए.एस डॉ. एस.पी. गुप्ता, हरियाणा के पूर्व डी.जी.पी यशपाल सिंघल आई.पी.एस., एन.आई.ए. के पूर्व चीफ योगेश चन्द्र मोदी आई.पी.एस., विशाल गर्ग गुरुग्राम,मधु गुप्ता, सीए दिनेश गुप्ता अशोक विहार दिल्ली, कैनविन फाउंडेशन गुरुग्राम के अध्यक्ष डी.पी. गोयल ने दीप प्रज्ज्वलन किया और उसके पश्चात् श्रद्धेय श्री संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने उन्हें पटका पहनकर आशीर्वाद दिया।
आज विश्राम दिवस में स्मयन्तक मणि की कथा सुनाते हुए श्रद्धेय संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने बताया कि धरती पर ऐसा कौन है जो अपवाद रहा हो। सभी पर कोई ना कोई दोष लगता ही है। भगवान श्री कृष्ण पर भी स्मयन्तक मणि को चुराने का दोष लगा था।
दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। दूसरों की प्रसन्नता के लिए कृत्य ना करते हुए अपनी आत्मा की प्रसन्नता के लिए सत्कर्म करते रहो। आवश्यकता से अधिक धन रखने में प्रतिग्रह रूपी पाप लगता है चाहे वो धन नीति से कमाया हो या अनीति से। इस दोष का निवारण दान से होता है। गलती से हुए पाप का निवारण हो सकता है पर जान-बूझकर किए पाप का फल भुगतना ही पड़ता है। सभी को अपने कर्तव्य का सही तरीके से निर्वहन करना चाहिए। अपने सुख की चाबी कभी किसी को ना दें। कभी किसी को अपयश नहीं देना चाहिए। शब्द को शस्त्र की तरह प्रयोग नहीं करना चाहिए। धर्म का एक लक्षण क्षमा है। पति का अर्थ है पोषण करना जैसे सेनापति सेना का, राष्ट्रपति राष्ट्र का और पति अपने परिवार का पोषण करते हैं। भगवान को जिस भाव से भी भजो वो सबको तार देते हैं। अतः भगवान का भजन और सेवा श्रद्धापूर्वक, उत्साहपूर्वक और प्रेमपूर्वक करना चाहिए।
संसार की तमाम प्रतिकूलताओं के बीच में जो बांसुरी बजा सकता है वो भगवान श्री कृष्ण है। उनसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं, वैरागी नहीं, प्रेमी नहीं, मित्र नहीं, राजनितिज्ञ नहीं। अपने इन्द्रिय सुख के लिए भजन करना भक्ति नही स्वार्थ है।
ठाकुर जी ने सुदामा चरित्र में बताया कि भगवान पदार्थ का नहीं, भक्त के प्रेम का भोग ग्रहण करते हैं। भगवान के किसी भी विधान पर संदेह नहीं करना चाहिए।
कोई व्यक्ति वस्तु किसी इंसान को नहीं रुलाती बल्कि इंसान की इच्छाऐं ही उसे रुलाती हैं। श्रीमद्भागवत भगवान का वांग्मय स्वरूप है। इस कलियुग में भगवान श्री कृष्ण का कीर्तन करने वाला मुक्त हो जाएगा। इस कलिकाल में चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते हर स्थिति-परिस्थिति में भगवान के नाम का आश्रय लेना चाहिए।
डॉ.एस.पी. गुप्ता ने अपने धन्यवाद संबोधन में श्रीमती स्नेह लता गर्ग का विशेष धन्यवाद किया जो इस श्रीमद्भागवत कथा की सूत्रधार बनीं। कामधेनु गोधाम में बनने वाले मंदिर में आर्थिक सहयोग करने वालों का भी विशेष धन्यवाद किया। विशेष रूप से यशपाल सिंघल आई.पी.एस., एन.आई.ए. के पूर्व चीफ योगेश चन्द्र मोदी आई.पी.एस., कैनविन फाउंडेशन गुरुग्राम के अध्यक्ष डी.पी. गोयल, ऊषा गर्ग, विशाल गर्ग तथा पायल गर्ग का धन्यवाद किया । उन्होंने कहा कि ना केवल कामधेनु गोधाम के सर्वांगीण विकास में, अपितु उनके खुद के जीवन के विकास में भी उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शशि गुप्ता का अभूतपूर्व योगदान रहा है।
संस्थान की अध्यक्षा शशि गुप्ता ने भी अपनी भावपूर्ण संवेदनाऐं व्यक्त की। योगाचार्य अरुण कुमार ने भी कामधेनु गोधाम की प्रशंसा करते हुए बताया कि यह संस्था मैं से हम की ओर, इलनैस से वैलनैस की तरफ अग्रसर है। श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम आरती, प्रशाद और भंडारे के साथ हुआ।